Raxaul (भारत- नेपाल सीमा): कभी खुद को हिंदू राष्ट्र घोषित कर चुका नेपाल, शुक्रवार को फिर उसी धार्मिक चेतना से सराबोर दिखा। वीरगंज स्थित शक्तिपीठ गहवामाई मंदिर से निकली तीसरी रथ यात्रा में उमड़े जनसैलाब ने न केवल आस्था का दृश्य रचा, बल्कि नेपाल के भीतर फिर से हिंदू राष्ट्र की आत्मा जागृत होती दिखी।
गहवामाई मंदिर से निकली इस ऐतिहासिक रथ यात्रा में नेपाल के कोने-कोने से आए लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भारत की सीमा से सटे क्षेत्रों- रक्सौल, मोतिहारी, बेतिया, सिवान से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के जयकारे लगाते हुए दर्शन के लिए पहुंचे। पूरा नगर “जय गहवामाई”, “हर-हर महादेव”, “जय माता दी” के नारों से गूंज उठा।
इस भव्य आयोजन को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे नेपाल का धार्मिक हृदय फिर से हिंदू राष्ट्र की चेतना से धड़कने लगा हो। एक ओर भारत में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही थी, वहीं दूसरी ओर नेपाल में गहवामाई की रथ यात्रा, यह संयोग नहीं बल्कि दो सनातन राष्ट्रों के सांस्कृतिक संबंधों का पुनः उद्घोष बन गया।
गहवा माई रथ पूजा समिति के महासचिव पप्पू गुप्ता ने कहा नेपाल में इस प्रकार की रथ यात्रा और लाखों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि यहां की जनता के हृदय में अभी भी हिंदू राष्ट्र की भावना जीवित है। यह रथ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सनातन संस्कृति का नव जागरण है।
यह वही नेपाल है, जहां बाबा पशुपतिनाथ विराजमान हैं, जहां सिद्धपीठ, शक्तिपीठ, और तंत्र साधना स्थलों की परंपरा प्राचीन है। भारत से सांस्कृतिक संबंधों ने सदियों से इस राष्ट्र को एक धार्मिक संगम बनाए रखा है। भले ही वर्तमान में नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित है, लेकिन गहवामाई जैसी रथ यात्राएं यह बताती हैं कि नेपाल की आत्मा अभी भी हिंदुत्व से जुड़ी हुई है।
विशेष रूप से यह आयोजन न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि नेपाल में फिर से ‘हिंदू राष्ट्र’ की संभावनाओं पर चर्चा को भी प्रासंगिक बना रहा है।
जहां भारत में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व विख्यात है, वहीं अब नेपाल की गहवामाई रथ यात्रा भी धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी धार्मिक पहचान बना रही है।