लोकसभा चुनाव में विकास के नाम पर एक परिवार के लिए 5 KG राशन, LPG गैस की दोबारा रिफलिंग के लिए पैसे नहीं होने के बाद भी उज्जवला योजना के नाम पर वोट बटोरने वाली सरकार के दावे उस वक्त पूरी तरह फिसड्डी लग रहे थे जब महज कुछ देर की बारिश और तेज हवाओं ने पूरे गांव को अंधेरे में डाल दिया है। दूर-दूर तक ना कोई मकान दिख रहा था ना आशियाने से किसी की आहट आ रही थी। तब गांव में ढिबड़ी और मिट्टी तेल (केरोसिन) वाले युग की याद आने लगी। जिसे आज ना सरकार तवज्जो देती है और ना ही आधुनिकता के दौर में गोते लगाने वाली जनता। वो जनता जो झोपड़ी हो या बड़े- बड़े महल अंधेरा के साये में सब साय-साय करते हैं, हां! कुछ लोग हैं सुखी- संप्नन वो जनरेटर सेट या इंवर्टर से गुजारा कर रहे हैं।
आज प्रकृति आपदा (बारीश-आंधी) जैसे हालातों के बाद अंधेरे की चादर में छिपा गांव उन नेताओं से सवाल पूछ रहा है कि हर 5 साल में इसी उम्मीद के साथ अपने बेटाओं को सदन पहुंचाते ताकी लोगों के बेहतर सुविधा मिले। लेकिन सुविधा के नाम पर जो व्यवस्थाएं हो रही है वह बेहतर तो है पर समाधान को समस्या बना देना भी इसी विकास के दायरे में आ गया है। उदाहरण के तौर पर जनता को राशन कार्ड पर 2020 से पहले तक मिट्टी का तेल दिया जाता था। मिट्टी तेल वाली व्यवस्था तो सरकर ने ये बता कर धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर कर दिया की अब प्रकाश के लिए घर-घर बिजली की व्यवस्था है, पर घंटों बिजली की कटौती से अंधेरा और मिट्टी तेल नहीं आपूर्ति होने से खास कर गरीब जनता की परेशानी कोई समझने वाला नहीं।
क्यों बंद हुई बिजली की आपूर्ति ?
बता दें कि (सरकार के मुताबिक) खाना पकाने और लाइटिंग के लिए राशन कार्डधारकों द्वारा केरोसीन का उपयोग किया जाता था लेकिन करोड़ों गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिए जाने से इसकी खपत घट गई है। ऑयल मिनिस्ट्री के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC)के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2020 में केरोसिन की खपत में 28.4 फीसदी की डी-ग्रोथ देखी गई। पीपीएसी के अनुसार, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब राज्यों को केरोसिन मुक्त घोषित किया गया जबकि गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने पीडीएस केरोसिन आवंटन की एक निश्चित मात्रा में स्वेच्छा से सरेंडर किया है। ऐसे में घटती केरोसिन की मांग के कारण केरोसिन की आपूर्ति इस कदर कम हुई की आज मिलने मुश्किल हो रहा है। नतीजन गरीब परिवार के लिए अंधेरा मानो मजबूरी है, वहीं चुनावी प्रचार में दावा करने वाले नेता दावे ऐसे करते हैं कि जैसे जनता को आज जो मिल रहा है सब उन्हीं के भरोसे जनता देख पा रही है या ले पा रही है वर्णा अब तक तो जनता बेसूध थी। हालांकि अभी भी कई प्रदेश, केंद्र सरकारों से मिट्टी तेल की डिमांड करते हैं और सरकार इसकी पूर्ति करती है।